संपादकीय

इज़रायल-ईरान युद्ध: वैश्विक संकट की शुरुआत? 🌍💥

इज़रायल का हमला आत्मरक्षा था या क्षेत्रीय दादागिरी?

12 जून 2025 की रात, जब अधिकांश दुनिया नींद की आगोश में थी, तब मध्य पूर्व एक बार फिर धधक उठा। इज़रायल ने ईरान की राजधानी तेहरान के नज़दीक स्थित सैन्य और परमाणु प्रतिष्ठानों पर बड़ा हवाई हमला किया। यह घटना केवल दो देशों के बीच युद्ध का बिगुल नहीं है, बल्कि वैश्विक भू-राजनीति के बदलते समीकरणों का संकेत है। यह हमला ‘उत्तर’ के रूप में किया गया, लेकिन यह भी स्पष्ट है कि यह घटना आने वाले वर्षों की विश्व राजनीति, कूटनीति, ऊर्जा बाजार और सुरक्षा चिंताओं को गहरे प्रभावित करेगी।

संघर्ष की पृष्ठभूमि

इज़रायल और ईरान के बीच टकराव कोई नया नहीं है। यह टकराव वैचारिक, धार्मिक, सामरिक और क्षेत्रीय प्रभाव क्षेत्र के कारण दशकों से चला आ रहा है। इज़रायल एक यहूदी राष्ट्र है जो खुद को चारों ओर से शत्रु ताकतों से घिरा मानता है। वहीं, ईरान खुद को इस्लामी क्रांति का संवाहक मानता है और क्षेत्रीय नेतृत्व का दावेदार भी।

2024 के अंत से दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ता गया था। जनवरी 2025 में ग़ाज़ा पर इज़रायल की भारी बमबारी में हजारों फिलिस्तीनियों की मौत हुई। इसके बाद ईरान ने अप्रैल 2025 में सीधे इज़रायल पर सैकड़ों ड्रोन और मिसाइलें दागीं। इज़रायल ने दावा किया कि उसने अधिकतर मिसाइलें मार गिराईं, लेकिन यह पहला अवसर था जब ईरान ने खुद की ज़मीन से हमला किया। इसके जवाब में, जून 2025 में इज़रायल ने ईरान की सैन्य क्षमताओं को पंगु बनाने का प्रयास किया।

हमला क्यों किया गया?

इज़रायल के इस हमले के पीछे कई कारक हैं:

  1. सुरक्षा की मनोवैज्ञानिक बाध्यता: इज़रायल हमेशा से “पूर्व-खतरे के उन्मूलन” की नीति पर चलता आया है। यदि वह महसूस करता है कि कोई देश उसे परमाणु या मिसाइल से निशाना बना सकता है, तो वह हमला करने में नहीं हिचकता।
  2. ईरान की परमाणु आकांक्षाएँ: इज़रायल का आरोप है कि ईरान गुपचुप ढंग से परमाणु हथियार विकसित कर रहा है, जो उसके अस्तित्व के लिए घातक हो सकता है।
  3. क्षेत्रीय संदेश: इज़रायल यह संदेश देना चाहता है कि वह अकेला है, पर निर्बल नहीं। सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, और मिस्र जैसे देशों को वह दिखाना चाहता है कि वह ईरान का सामना करने में सक्षम है।
  4. घरेलू राजनीतिक दबाव: नेतन्याहू सरकार घरेलू आलोचना और भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी हुई है। राष्ट्रीय सुरक्षा संकट राजनीतिक ध्यान हटाने का एक साधन भी बनता है।

वैश्विक असर

यह हमला सिर्फ एक सैन्य कार्रवाई नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति के लिए एक बड़ा ज्वालामुखी है, जो कई मोर्चों पर फट सकता है।

  1. मध्य पूर्व में अस्थिरता

इस हमले ने पहले से अस्थिर मध्य पूर्व को और असंतुलित कर दिया है। लेबनान का हिज़्बुल्लाह, यमन के हौथी विद्रोही, इराक के ईरान-समर्थित मिलिशिया अब इज़रायल पर जवाबी हमले कर सकते हैं। इससे व्यापक क्षेत्रीय युद्ध की संभावना प्रबल हो जाती है।

  1. ऊर्जा संकट और तेल की कीमतें

ईरान और अरब देशों के बीच तनाव बढ़ने से होरमुज़ जलडमरूमध्य—जहाँ से वैश्विक तेल का 30% गुजरता है—पर खतरा मंडराने लगा है। यदि ईरान इस रास्ते को बाधित करता है, तो कच्चे तेल की कीमतें 150 डॉलर प्रति बैरल तक जा सकती हैं। यह वैश्विक मंदी को जन्म दे सकता है।

  1. ध्रुवीकृत विश्व व्यवस्था

इस हमले से अमेरिका, रूस और चीन जैसे महाशक्तियों के रुख स्पष्ट हो गए हैं। अमेरिका ने इस्राइली हमले को “सावधानीपूर्वक योजना” बताया, जबकि रूस और चीन ने इसे “गंभीर अंतरराष्ट्रीय कानून उल्लंघन” बताया है। यह दुनिया को फिर से दो ध्रुवों में बाँट सकता है।

  1. भारत की कूटनीतिक चुनौती

भारत दोनों देशों का मित्र है—इज़रायल से रक्षा और तकनीकी सहयोग, ईरान से ऊर्जा, चाबहार पोर्ट और रणनीतिक साझेदारी। इस संकट में भारत को संतुलन साधना होगा। एक ओर वह अमेरिकी गठबंधन में है, दूसरी ओर उसे अपने ऊर्जा हित भी बचाने हैं।

क्या यह हमला जायज है?

इस सवाल का उत्तर केवल भावनाओं से नहीं, तथ्यों और अंतरराष्ट्रीय कानूनों के आधार पर देना चाहिए।

इज़रायल का तर्क: उसे आत्मरक्षा का अधिकार है। जब ईरान ने पहले हमला किया, तो जवाब देना जायज था। वह यह भी कहता है कि उसके नागरिकों की सुरक्षा सर्वोपरि है।

ईरान का तर्क: उसने इज़रायल के ग़ाज़ा हमलों में मारे गए हजारों लोगों के जवाब में यह कार्यवाही की। उसके अनुसार वह “उत्पीड़क शक्ति” के खिलाफ “सामूहिक प्रतिरोध” का नेतृत्व कर रहा है।

संयुक्त राष्ट्र चार्टर: इसकी धारा 51 आत्मरक्षा में कार्रवाई की अनुमति देती है, बशर्ते वह “आवश्यक” और “आनुपातिक” हो। यदि इज़रायल का हमला केवल सैन्य ठिकानों पर केंद्रित रहा, तो यह जायज हो सकता है। लेकिन यदि इसमें नागरिक ठिकानों को भी निशाना बनाया गया, तो यह मानवाधिकार उल्लंघन माना जाएगा।

क्या यह युद्ध आगे बढ़ेगा?

इस प्रश्न का उत्तर दो कारकों पर निर्भर है:

  1. ईरान की प्रतिक्रिया कितनी आक्रामक होती है?
  2. अमेरिका, रूस और चीन जैसे देशों की भूमिका क्या होती है?

यदि ईरान सीधे इज़रायल पर जवाबी हमला करता है, तो युद्ध और व्यापक हो सकता है। यदि वह केवल क्षेत्रीय गुटों को सक्रिय करता है, तो यह एक ‘छाया युद्ध’ बन सकता है जो वर्षों तक चलता रहे।

निष्कर्ष

इस्राइल-ईरान युद्ध आधुनिक युग की वह त्रासदी है जिसमें सैन्य तकनीक, धार्मिक उन्माद, राजनीतिक रणनीति और वैश्विक कूटनीति—all interlinked हैं। यह केवल एक राष्ट्र की लड़ाई नहीं, बल्कि एक ‘सभ्यता संघर्ष’ का प्रतीक बन गया है, जिसमें हजारों मासूम जानें दांव पर हैं।

ऐसे समय में जब दुनिया जलवायु संकट, आर्थिक मंदी और तकनीकी संक्रमण जैसे बड़े मुद्दों से जूझ रही है, यह युद्ध मानवता की दिशा को भटका सकता है।

अभी भी समय है कि संयुक्त राष्ट्र और प्रभावशाली राष्ट्र इस युद्ध को सीमित करें और मध्य पूर्व को स्थायी शांति की ओर ले जाएँ। अन्यथा यह आग केवल ईरान या इज़रायल तक सीमित नहीं रहेगी—यह समूची दुनिया को अपनी चपेट में ले सकती है।

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