विजय जुलूस में मौत की चीखें: जश्न के नाम पर मौत बांटता प्रबंधन

बेंगलुरु की सड़कों पर बुधवार को जो हुआ, वह सिर्फ एक अफसोसनाक हादसा नहीं था, बल्कि लापरवाह व्यवस्था और अंधे उत्सववाद की भयानक परिणति थी। रॉयल चैलेंजर्स बंगलुरु (RCB) की IPL 2025 में पहली खिताबी जीत के बाद आयोजित ‘विक्ट्री परेड’ में उमड़ी भीड़ ने जश्न के रंग में डूबने की बजाय मातम की स्याही में खुद को रंगा पाया। चिन्नास्वामी स्टेडियम के बाहर भगदड़ में 11 लोगों की मौत हो गई और करीब दो दर्जन से अधिक लोग घायल हो गए।
अब सवाल यह है कि क्या इस आयोजन का कोई औचित्य था? और अगर था, तो क्या प्रशासन और आयोजकों ने इसे लेकर पूरी गंभीरता दिखाई?
उत्सव या उन्माद?
RCB की जीत ऐतिहासिक थी, इसमें कोई दो राय नहीं। 16 सालों के लंबे इंतजार के बाद टीम को पहली बार खिताब मिला था। खिलाड़ियों और प्रशंसकों के लिए यह गर्व का क्षण था। लेकिन क्या ऐसे किसी आयोजन की योजना बनाते समय यह नहीं सोचा जाना चाहिए कि हजारों की भीड़ को संभालने के लिए क्या इंतजाम जरूरी होंगे? क्या यह विचार नहीं किया गया कि शहर की यातायात, भीड़ नियंत्रण, सुरक्षा और आपात सेवाओं की क्षमता कितनी है?
साफ है, जोश में होश खो दिया गया। परेड की घोषणा होते ही शहर भर से लोग उमड़ पड़े। सोशल मीडिया और लाइव अपडेट्स ने भीड़ को और उकसाया। ऐसे में यह प्रश्न उठना लाजमी है कि क्या आयोजकों ने इसके लिए प्रशासन से विधिवत अनुमति ली थी? और यदि ली भी थी, तो क्या प्रशासन ने अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन किया?
लापरवाह व्यवस्था, मौन प्रशासन
जो दृश्य चिन्नास्वामी स्टेडियम के बाहर देखने को मिला, वह किसी आपातकाल से कम नहीं था। सुरक्षा के नाम पर नाकाफी पुलिस बल, अव्यवस्थित बैरिकेडिंग, और भीड़ नियंत्रण की पूरी विफलता—इन सभी ने मिलकर एक त्रासदी को जन्म दिया।
प्रश्न है कि यदि यह कार्यक्रम इतनी बड़ी संख्या में लोगों की मौजूदगी को आकर्षित करने वाला था, तो भीड़ प्रबंधन को लेकर कोई मॉक ड्रिल या प्लान क्यों नहीं था? क्या यह सब केवल टीम की लोकप्रियता और क्षणिक राजनीतिक लाभ के लिए किया गया?
और सबसे बड़ी बात—जब आयोजन के दौरान भगदड़ की खबरें आईं, तो प्रशासन की प्रतिक्रिया कितनी तेज थी? क्या घायलों को समय रहते इलाज मिला? क्या मौके पर पर्याप्त एंबुलेंस थीं? क्या फायर विभाग या आपात सेवाएं समय पर सक्रिय हो पाईं?
किसकी जिम्मेदारी, कौन जवाबदेह?
अब जब जन-धन की हानि हो चुकी है, तो जिम्मेदारियों की गेंद एक-दूसरे के पाले में उछाली जा रही है। कर्नाटक सरकार से लेकर बेंगलुरु नगर निगम और पुलिस प्रशासन तक—हर कोई या तो चुप है या आरोपों से बच रहा है।
RCB प्रबंधन और IPL आयोजक मंडल पर भी सवाल उठते हैं। क्या यह उनका कर्तव्य नहीं था कि वे इस आयोजन के लिए पूरी तैयारी और प्रशासनिक समन्वय सुनिश्चित करते?
निष्कर्ष: जश्न की कीमत जान से क्यों?
एक खेल की जीत पर जश्न मनाना अपराध नहीं है, लेकिन जब जश्न लोगों की जान ले ले, तो यह सिर्फ अफसोसजनक नहीं, अपराध की श्रेणी में आता है। ऐसी घटनाएं हमें बार-बार चेताती हैं कि हम अपनी व्यवस्था और मानसिकता—दोनों में सुधार लाएं।
बेंगलुरु की यह त्रासदी हमें यह सोचने को मजबूर करती है कि क्या हम उत्सव मनाने की सभ्यता और जिम्मेदारी खो बैठे हैं? क्या खेल के नाम पर हम भीड़तंत्र को बढ़ावा दे रहे हैं?