संपादकीय

बिन गुरु होय न ज्ञान: गुरु महिमा का शाश्वत सत्य

भारतीय संस्कृति और दर्शन की आधारशिला में गुरु को सर्वोच्च स्थान दिया गया है। सदियों से गूंजती हुई कहावत, “बिन गुरु होय न ज्ञान”, केवल एक वाक्य नहीं, बल्कि एक गहरा और शाश्वत सत्य है जो आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना यह प्राचीन काल में था। यह उक्ति हमें बताती है कि सच्चा ज्ञान, जो जीवन को सार्थकता प्रदान करता है, एक योग्य गुरु के मार्गदर्शन के बिना प्राप्त नहीं किया जा सकता है।

ज्ञान और सूचना में एक मौलिक अंतर है। आज के डिजिटल युग में, सूचना हमारी उंगलियों पर उपलब्ध है। इंटरनेट, पुस्तकें और विभिन्न स्रोत हमें अनगिनत तथ्य और डेटा प्रदान कर सकते हैं, लेकिन यह सब केवल सूचना है, ज्ञान नहीं। सूचना को ज्ञान में परिवर्तित करने की कला एक गुरु ही सिखाता है। गुरु वह कुशल शिल्पकार है जो शिष्य रूपी पत्थर को तराशकर उसे एक सुंदर और सार्थक मूर्ति का आकार देता है। वे हमें न केवल “क्या” सिखाते हैं, बल्कि “क्यों” और “कैसे” की समझ भी विकसित करते हैं। वे हमें विवेक और नैतिकता का पाठ पढ़ाते हैं, जो किसी भी पुस्तक में नहीं मिल सकता।

इतिहास और हमारे धर्मग्रंथ गुरु की महिमा के उदाहरणों से भरे पड़े हैं। संत कबीरदास ने तो गुरु को ईश्वर से भी बढ़कर बताया है, क्योंकि गुरु ही ईश्वर तक पहुंचने का मार्ग दिखाते हैं:

गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पांय।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय॥

यह दोहा गुरु के महत्व की पराकाष्ठा है। इसी प्रकार, चाणक्य के मार्गदर्शन के बिना एक साधारण बालक चंद्रगुप्त मौर्य, अखंड भारत के महान सम्राट नहीं बन पाता। रामकृष्ण परमहंस के सान्निध्य के बिना नरेंद्र, स्वामी विवेकानंद के रूप में विश्व पटल पर नहीं चमक पाते। एकलव्य की गुरुभक्ति ने उसे द्रोणाचार्य की मूर्ति से ही वह ज्ञान प्राप्त करने में सक्षम बनाया जो अद्वितीय था। ये सभी उदाहरण सिद्ध करते हैं कि एक गुरु शिष्य की अंतर्निहित क्षमताओं को पहचानकर उन्हें जागृत करता है और उन्हें उनके लक्ष्य तक पहुंचाता है।

गुरु का स्वरूप समय के साथ बदल सकता है। वे हमारे माता-पिता, हमारे विद्यालय के शिक्षक, हमारे बॉस या जीवन के किसी भी क्षेत्र में हमारा मार्गदर्शन करने वाला कोई भी व्यक्ति हो सकते हैं। महत्वपूर्ण यह है कि हम उस ज्ञान के स्रोत को पहचानें और उसके प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता का भाव रखें। गुरु अज्ञान के अंधकार को मिटाकर ज्ञान का दीपक जलाते हैं। वे हमें केवल किताबी ज्ञान ही नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला, चुनौतियों का सामना करने का साहस और नैतिक मूल्यों की समझ भी देते हैं।

निष्कर्षतः, “बिन गुरु होय न ज्ञान” की उक्ति हमें यह स्मरण कराती है कि जीवन में एक मार्गदर्शक का होना अनिवार्य है। गुरु वह सेतु है जो हमें अज्ञान से ज्ञान की ओर, अंधकार से प्रकाश की ओर और साधारणता से उत्कृष्टता की ओर ले जाता है। सच्चा गुरु पा लेना जीवन का सबसे बड़ा सौभाग्य है और उनके द्वारा दिए गए ज्ञान और संस्कारों का सम्मान करना ही सच्ची गुरु-भक्ति है। वे हमारे जीवन के वास्तविक निर्माता हैं, जिनकी महिमा अनंत है।

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