ट्रंप का व्यापारिक दांव और भारत के लिए अवसर

अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने एक बार फिर अपनी ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति के तहत संरक्षणवादी दांव चलते हुए वैश्विक व्यापारिक व्यवस्था में हलचल मचा दी है। सोमवार को उनके प्रशासन द्वारा एक दर्जन से अधिक देशों को यह चेतावनी देना कि 1 अगस्त से उनके आयातों पर 25 से 40 प्रतिशत तक का भारी-भरकम शुल्क लगाया जा सकता है, व्यापार युद्ध की आग को और भड़काने जैसा है। इस सूची में जापान और दक्षिण कोरिया जैसे अमेरिका के प्रमुख रणनीतिक साझेदारों का शामिल होना यह स्पष्ट करता है कि ट्रंप प्रशासन अपनी शर्तों पर व्यापारिक संबंधों को फिर से परिभाषित करने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। लेकिन इस तनावपूर्ण माहौल के बीच एक सबसे महत्वपूर्ण और सकारात्मक संकेत भारत के लिए उभरा है। भारत का नाम इस सूची से नदारद है और साथ ही, राष्ट्रपति ट्रंप ने यह संकेत दिया है कि दोनों देश जल्द ही एक व्यापार समझौते पर पहुँच सकते हैं।
यह घटनाक्रम वैश्विक मंच पर भारत की बढ़ती अहमियत और सधी हुई कूटनीति का प्रमाण है। एक तरफ जहाँ जापान और दक्षिण कोरिया जैसे विकसित देश 25 प्रतिशत शुल्क की मार झेलने की तैयारी कर रहे हैं, वहीं भारत को इस दंडात्मक कार्रवाई से बाहर रखना एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है। यह ट्रंप प्रशासन की ‘गाजर और छड़ी’ की नीति को दर्शाता है, जहाँ सहयोग और बातचीत के लिए तैयार देशों को पुरस्कृत किया जा रहा है, जबकि अन्य पर दबाव बनाया जा रहा है। यह भारत के लिए एक स्वर्णिम अवसर है कि वह न केवल इन विनाशकारी शुल्कों से बचा रहे, बल्कि अमेरिका के साथ अपने व्यापारिक रिश्तों को एक नई, स्थिर और पारस्परिक रूप से लाभप्रद दिशा दे।
पिछले कुछ समय से भारत और अमेरिका के बीच व्यापार संबंधी कुछ मुद्दों पर मतभेद बने हुए थे, जिनमें जीएसपी (Generalized System of Preferences) दर्जे की समाप्ति और कुछ भारतीय उत्पादों पर शुल्क लगाना शामिल था। अब, जब अमेरिका स्वयं एक व्यापक व्यापार समझौते के लिए उत्सुक दिख रहा है, तो भारत के पास इन पुराने मुद्दों को सुलझाने और अपने निर्यातकों के लिए अमेरिकी बाजार में एक स्थायी तथा बेहतर पहुँच सुनिश्चित करने का मौका है। यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि जब चीन, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे प्रमुख प्रतिस्पर्धी देश अमेरिकी शुल्कों के कारण दबाव में होंगे, तब भारतीय उत्पादों को वहाँ एक स्वाभाविक बढ़त मिल सकती है।
हालांकि, इस अवसर के साथ एक सतर्कता की आवश्यकता भी जुड़ी हुई है। ट्रंप प्रशासन अपनी अप्रत्याशित नीतियों के लिए जाना जाता है और व्यापारिक समझौतों की शर्तें अक्सर जटिल होती हैं। भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि समझौता केवल तात्कालिक राहत देने वाला न हो, बल्कि दीर्घकाल में भारतीय किसानों, उद्योगों और उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने वाला हो। वार्ता की मेज पर भारत को अपनी प्राथमिकताओं पर अडिग रहते हुए एक संतुलित सौदा करना होगा।
निष्कर्षतः, राष्ट्रपति ट्रंप का यह कदम जहाँ वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए एक और चुनौती है, वहीं भारत के लिए यह एक कूटनीतिक जीत और आर्थिक अवसर का द्वार खोलता है। यह दर्शाता है कि व्यापार युद्ध के इस दौर में संवाद और बातचीत का रास्ता ही सबसे प्रभावी है। भारत ने इस रास्ते पर चलकर फिलहाल खुद को सुरक्षित रखा है, और अब चुनौती इस अवसर को एक ठोस, दीर्घकालिक और मजबूत व्यापारिक साझेदारी में बदलने की है।