एक हादसा,कई सवाल

12 जून 2025 को भारत ने एक और हवाई त्रासदी देखी—जिसने न केवल 241 ज़िंदगियाँ लील लीं, बल्कि विमानन व्यवस्था की संरचनात्मक कमजोरियों को भी उजागर कर दिया। अहमदाबाद से लंदन के लिए उड़ान भरने वाला एयर इंडिया का बोइंग 787-8 ड्रीमलाइनर, टेकऑफ के केवल कुछ मिनटों में ही दुर्घटनाग्रस्त हो गया। यह हादसा जितना भौतिक रूप से भीषण था, उससे कहीं अधिक मानसिक रूप से झकझोर देने वाला भी रहा।
एक हादसा और 241 अधूरी कहानियाँ
इस विमान में बच्चे थे, नवदंपति थे, बुज़ुर्ग माता-पिता थे, और कुछ ऐसे भी जो पहली बार विदेश की यात्रा कर रहे थे। कुछ को काम से जाना था, कुछ को अपनों से मिलने। लेकिन वे सभी अब एक साझा त्रासदी का हिस्सा बन चुके हैं। उन सभी की मृत्यु न केवल एक व्यक्तिगत क्षति है, बल्कि एक सामाजिक, सांस्कृतिक और प्रशासनिक विफलता की भी अभिव्यक्ति है।
तकनीकी प्रणाली की विफलता?
बोइंग 787 ड्रीमलाइनर को “अत्याधुनिक” विमान कहा जाता है—जिसमें फ्लाई-बाय-वायर तकनीक, कंपोजिट मटेरियल और ऊर्जा दक्ष इंजन जैसी खूबियाँ होती हैं। फिर भी यह विमान उड़ान भरते ही क्रैश हो गया। प्रासंगिक प्रश्न यह है कि तकनीकी रूप से इतना परिष्कृत विमान चंद मिनट में कैसे फेल हो गया?
प्रारंभिक जानकारी से यह स्पष्ट नहीं हो सका है कि क्या इंजन फेल हुआ, क्या सेंसर गलत संकेत दे रहे थे, या ऑटो-पायलट प्रणाली ने जवाब देना बंद कर दिया। एयर ट्रैफिक कंट्रोल को न तो ‘मेडे’ कॉल मिला, न ही कोई चेतावनी। इसका आशय यह है कि समस्या इतनी तात्कालिक थी कि प्रतिक्रिया की संभावना ही नहीं बनी।
यह इशारा करता है किसी प्रणालीगत गड़बड़ी की ओर—या तो किसी क्रिटिकल कंपोनेंट ने विफलता दी, या मेंटेनेंस और निरीक्षण में गंभीर चूक हुई। यह भी संभव है कि हालिया रखरखाव के दौरान मानक प्रक्रियाओं की अवहेलना की गई हो।
बोइंग और वैश्विक अविश्वास
यह पहली बार नहीं है जब बोइंग विमानों पर गंभीर सवाल उठे हों। 2018 और 2019 में हुए दो 737 मैक्स हादसों ने पहले ही दुनिया भर में बोइंग की छवि पर गहरा आघात किया था। अब ड्रीमलाइनर जैसी सीरीज पर भी सवाल उठने लगे हैं।
बोइंग कंपनी पर पहले से ही उत्पादन में तेजी लाने के दबाव, सुरक्षा जांचों की उपेक्षा, और सॉफ्टवेयर टेस्टिंग में लापरवाही के आरोप लगते रहे हैं। यदि अहमदाबाद हादसे में भी वही पैटर्न उभरता है, तो भारत समेत तमाम देशों को इस अमेरिकी कंपनी की मशीनों पर दोबारा भरोसा करने से पहले बहुत गहरी छानबीन करनी होगी।
एयर इंडिया और निगरानी संस्थाओं की भूमिका
एयर इंडिया, जो अब निजी स्वामित्व में है, के पास ड्रीमलाइनर के सबसे बड़े बेड़ों में से एक है। सवाल यह है कि क्या निजीकरण के बाद कंपनी का फोकस यात्रियों की सुरक्षा पर भी उतना ही रहा जितना कि राजस्व और संचालन विस्तार पर?
क्या नियमित प्रशिक्षण, सघन निरीक्षण और तकनीकी जांच में कटौती की जा रही है? और क्या नागर विमानन महानिदेशालय (DGCA) जैसी संस्थाएं अपनी भूमिका सही ढंग से निभा पा रही हैं? अगर ये संस्थाएं केवल ‘पेपरवर्क’ तक सीमित रह जाएं, तो हादसे केवल एक त्रासदी नहीं, एक नियति बन जाते हैं।
हवाई यात्रा: सुविधा या जोखिम?
भारत जैसे देश में हवाई यात्रा अब मध्यमवर्ग की भी पहुँच में आ चुकी है। कम कीमत की टिकट, बढ़ते गंतव्य और एयरलाइन प्रतिस्पर्धा के कारण अब लाखों लोग हर साल उड़ान भरते हैं। लेकिन यह उपलब्धि तभी मायने रखती है जब हर उड़ान सुरक्षित हो।
अहमदाबाद हादसा यह याद दिलाता है कि यात्रियों की सुरक्षा केवल तकनीक से नहीं, पूरी व्यवस्था की जिम्मेदारी से तय होती है—जिसमें पायलट की सतर्कता, टेक्निकल टीम की सटीकता, और प्रबंधन की जवाबदेही शामिल होती है।
क्या सीखा जाए?
हादसे के बाद सरकार ने जांच के आदेश दिए हैं। लेकिन भारत में ऐसे जांच प्रायः लम्बे समय तक चलती हैं और उनका निष्कर्ष सार्वजनिक rarely किया जाता है। इस हादसे को एक अवसर बनाया जाना चाहिए—न केवल निष्पक्ष जांच के लिए, बल्कि संपूर्ण विमानन प्रणाली की समीक्षा के लिए।
बोइंग 787 विमानों की फ्लाइंग परमिट की तत्काल समीक्षा हो।
एयर इंडिया के सभी रखरखाव प्रोटोकॉल और प्रशिक्षण मॉड्यूल सार्वजनिक और स्वतंत्र जांच के दायरे में लाए जाएं।
DGCA की कार्यप्रणाली की पारदर्शिता सुनिश्चित की जाए।
सभी विमानों की उड़ान से पहले किए जाने वाले सेफ्टी चेक्स को डिजिटल रूप से ट्रैक किया जाए, और उनमें किसी भी तरह की छूट को दंडनीय अपराध बनाया जाए।
अंतिम बात
यह हादसा केवल एक तकनीकी असफलता नहीं, एक नैतिक चेतावनी है—कि जब व्यवस्था यात्रियों को सिर्फ ‘यूनिट’ समझने लगती है, तो मानवीय त्रासदियाँ केवल संभावनाएँ नहीं, अनिवार्यताएँ बन जाती हैं।
विमान के मलबे में केवल मशीन के पुर्जे नहीं बिखरे थे, बल्कि उन तमाम लोगों के सपने, रिश्ते और भविष्य की योजनाएँ भी चूर हो गईं। हमें यह याद रखना होगा कि हर उड़ान एक भरोसे पर टिकी होती है—और अगर वह भरोसा टूटता है, तो सिर्फ यात्री ही नहीं गिरते, पूरा देश नीचे आता है।